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Tuesday, March 30, 2010

ये जिन्दगी


ये जिन्दगी
कभी हँसाती है ये जिन्दगी,
कभी रुलाती है ये जिन्दगी,
पर ये क्या चाहती है ,
क्यों नहीं बताती है ये जिन्दगी.
इस जिन्दगी को जीना,
मेरी हसरत नहीं.
कैसे ये मान लुँ,
कि मोहब्बत खुदा की फ़ितरत नहीं.
और जी लूँ तेरे बिना,
खुद से इतनी नफ़रत भी नहीं,
नहीं चाहिये जिन्दगी से कुछ और मुझे,
जी लेता हूं मै अपनी जिन्दगी,
बस तेरी यादों के सहारे,
कभी मिलने की खुशी में,
तो कभी न मिलने के गम के सहारे.
पर ऐसा नहीं है,
कि मैनें अपना मकसद खो दिया है,
और ना ही अपने आने वाले,
हर कल को धो दिया है.
मेरी जिन्दगी का मक्सद,
तो आज भी वही है,
किसी के लिये तुम या मैं नहीं,
बस मोहब्बत ही सही है.
.

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