Search This Blog

Pages

Powered By Blogger

Thursday, March 4, 2010

मुश्किल है जिन्दगी का अर्थ बताना

मुश्किल है जिन्दगी का अर्थ बताना
एक भाई,एक बेटॆ ,एक बाप का फ़र्ज निभाना.
मुश्किल है,इस मदमस्त जवानी में,
अपनी प्रेमीका के लिये गीत गाना,
मुश्किल है ,अपनी प्रतीभा को दबाना,
पर उससे भी मुश्किल है,आज एक नौकरी पाना.

भाई ने कहा..जबानी तो अभी आना है,
जरुरी है अभी पैसे कमाना है,
पिता ने कहा..जरुरी नहीं है पैसे कमाना,
जरुरी है अपनी जिन्द्गगी को औरों के लिये मिसाल बनाना,
बहन ने कहा...पैसे भी कमाना है, कुछ सोहरत भी पाना है.
मां ने कहा.. बस बेटा तु मुस्कुराना,
अगर कोई गम हो तो मुझे बताना.

मैनें कहा ...मां मैं क्या करुं?
भाई के लिये जिऊ, या बहन के लिये मरु,
या पिता  के लिये कुछ करुं,
या मैं जिऊं उस प्रेमिका के लिये,
जिसके बिना मै अधुरा हूं.

मां ने कहा ..जी ले बेटा, जैसा तु चाहाता है,
क्युंकि जिन्दगी नहीं चलती है बस कुछ पाने से,
जिन्दगी चलती है हर वक्त मुस्कुराने से.
हर वक्त हँस्ते हो यदि उसके पास होने से,
कोई फ़र्क नही पङता तेरे भाई , बहन, पिता के रोने से,
वो फिर कल मुस्कुराने लगेंगे तुझे हँस्ता देखकर.
पर यदि तु न खुश रहा, तो हमारा हँसना बेकार,
क्योंकि हमें भी तुमसे से उतना ही प्यार है ,
जितना तु करता है अपने प्यार से.

मैनें कहा ..माँ ...पर डर लगता है ये रिस्ते तो खून के हैं,
वो तो बस इस साल के पहले वाले जुन के हैं.
माँ ने कहा..रिस्ते नहीं बनते खून से ,
ये बनते है बस जज्बात और जुनुन से.
यदि रिस्ते बनते... खून से तो,
रक्तदान करके भी क्यों नहीं जीते ,
ये हिन्दु- मुस्लिम सकुन से.
क्योंकि खून में तो नहीं लिखा होता है,
किसी की जाति और धर्म.
और ना ही कोई पूछ्ता कि क्या है ...
इस चढाये जाने वाले खून का जाति और धर्म.
पर बाहर आते ही क्यों फ़ैल जाता है ये भ्रम.

1 comment: